Thursday, May 3, 2012

एक ताज़ा ग़ज़ल

बहुत दिनों के बाद कुछ समय निकल सका ग़ज़ल के लिये और एकाएक हो गई ये ग़ज़ल; जैसे कि आने को बेताब ही थी। प्रस्‍तुत है:

हुआ क्‍या है ज़माने को कोई निश्‍छल नहीं मिलता
किसी मासूम बच्‍चे सा कोई निर्मल नहीं मिलता।

युगों की प्‍यास क्‍या होती है वो बतलाएगा तुमको
जिसे मरुथल में मीलों तक कहीं बादल नहीं मिलता।

जुनूँ की हद से आगे जो निकल जाये शराफ़त में
हमें इस दौर में ऐसा कोई पागल नहीं मिलता।

यक़ीं कोशिश पे रखता हूँ, मगर मालूम है मुझको
अगर मर्जी़ न हो तेरी, किसी को फल नहीं मिलता।

जहॉं भी देखिये नक्‍़शे भरे होते हैं जंगल से
ज़मीं पर देखिये तो दूर तक जंगल नहीं मिलता।

समस्‍या में छुपा होगा, अगर कुछ हल निकलना है
नियति ही मान लें उसको, अगर कुछ हल नहीं मिलता।

हर इक पल जि़ंदगी का खुल के हमने जी लिया 'राही'
गुज़र जाता है जो इक बार फिर वो पल नहीं मिलता।

तिलक राज कपूर 'राही'

Monday, March 5, 2012

होली की अग्रिम बधाई

बस ज़रा सा इंतज़ार और होली आपके द्वार। होली में एक विशिष्‍ट आवश्‍यकता एक वर्ग विशेष की होती है जिसका मध्‍यप्रदेश में उस दिन बाज़ार में मिलना दूभर होता है। इसलिये पहले से स्टॉक जमा होने लगता है। आज उसी स्‍टॉक शौकीनों की बात एक तरही के माध्‍यम से। तरही तो पुरानी है लेकिन ब्‍लॉग पर पहली बार आपका स्‍वागत कर रही है।

तरही: रोज पव्वा पी लिया तो पीलिया हो जायेगा

वक्‍त, यूँ सोचा न था, इक दिन हवा हो जायेगा
जु़ल्‍फ़ से भरपूर ये सर, चॉंद सा हो जायेगा।

हम मिले, तो पूछ मत, क्‍या फ़ायदा हो जायेगा
तेरे अब्‍बा का पता, मेरा पता हो जायेगा।

बंद डिब्‍बा दूध बच्‍चा, गुलगुला हो जायेगा
और भूखा बाप इक दिन सींकिया हो जायेगा।

है बहुत मजबूर, अद्धी पी रहा है, जानकर;
रोज पव्वा पी लिया तो पीलिया हो जायेगा।

बस यही तो सोचकर वो शादियॉं करता रहा
दर्द बढ़ता ही गया तो खुद दवा हो जायेगा।

रंग का त्‍यौहार है छेड़ें न क्‍यूँकर लड़कियॉं
मुँह अगर काला हुआ तो क्‍या नया हो जायेगा।

जिस्‍म सल्‍लू सा दिखा तो आपसे शादी करी
ये न सोचा था बदन यूँ पिलपिला हो जायेगा।

हो गया बेटा जवां, ये हरकतें मत कीजिये
वरना वो भी आप सा ही मनचला हो जायेगा।

हुस्‍न की शहजादियों को मुँह लगाना छोडि़ये
गर किसी को भा गया तो पोपला हो जायेगा।

इश्‍क जिससे हो गया ‘राही’ न शादी कीजिये
इश्‍क का सारा मज़ा ही किरकिरा हो जायेगा।