देखकर लोकतंत्र तालों में
लोग तब्दील हैं मशालों में।
अब तो उत्तर बहुत कठिन होंगे
इस दफ़्अ: आग है सवालों में।
कोंपलों के भी देखिये तेवर
वो बदलने लगी हैं भालों में।
एकता क्या है अब वो देखेंगे
बॉंटते आये हैं जो पालों में।
वायदे तो बहुत हुए लेकिन
क्या मिला है स्वतंत्र सालों में।
जो हमारे लहू में होनी थी
वो ही लाली है उनके गालों में।
आदमीयत कभी तो समझेंगे
भेडि़ये आदमी की खालों में।
इस लड़ाई में मिट गये हम तो
फिर मिलेंगे तुम्हें मिसालों में।
मंजि़लें ठानकर ये निकले हैं
अब न 'राही' फ़ँसेंगे चालों में।
बह्र: फ़ायलुन्, फ़ायलुन्, मफ़ाईलुन्