बताते हैं कि भक्त कुंभनदास सदैव गिरधर भक्ति में लीन रहते थे और इसमें व्यवधान उन्हें पसंद नहीं था।
बादशाह अकबर ने जब इनके भक्तिगान की प्रशंसा सुनी तो बेताब हो गये सुनने को। राजाज्ञा जारी हो गयी कि भक्त कुंभनदास दरबार में उपस्थित होकर गायन प्रस्तुत करें। भक्त कुंभनदास ने मना कर दिया। अंतत: राजहठ की स्थिति पैदा हो गयी तो लोकहित में स्वीकार कर लिया दरबार में आने को लेकिन यह शर्त रखी कि राजा की भेजी सवारी में न आकर पैदल ही आयेंगे।
पैदल ही पहुँचे और जब गायन का निर्देश हुआ तो कहा कि भजन तो मन से होता है किसी के कहने से नहीं। अंतत: बीरबल की चतुराई ने मना तो लिया लेकिन बात मन की ही निकली:
भगत को सीकरी सौं का काम।
आवत जात पनहिया टूटी बिसरि गयो हरि नाम।
जाको मुख देखे दुख उपजत ताको करनो परत सलाम।
कुम्भनदास लाला गिरिधर बिन यह सब झूठो धाम।
आवत जात पनहिया टूटी बिसरि गयो हरि नाम।
जाको मुख देखे दुख उपजत ताको करनो परत सलाम।
कुम्भनदास लाला गिरिधर बिन यह सब झूठो धाम।
(कहा जाता है कि बादशाह अकबर का चेहरा सुंदर नहीं था।)
मेरे साथ ऐसा स्थिति साम्य तो नहीं। मैं तो भक्त कुंभनदास के चरणरज भी पा लूँ तो स्वयं को धन्य समझूँ। अशआर तो खुद-ब-खुद निकलते हैं, निकालो तो कुछ बन जरूर जाता है लेकिन वो ग़ज़ल के पैमाने पर खरे उतरें ये जरूरी नहीं। यहॉं बात राजहठ की ना होकर पुत्री के निवेदन की थी और वो भी व्यापक संदर्भ में, सो कोशिश की और जो परिणाम रहा वह प्रस्तुत है। अर्सा पहले पढ़ा एक मिसरा याद आ गया जो इसमें मददगार रहा है। मिसरा था 'मिले क्यूँ ना गले फिर शम्भू औ सत्तार होली में।' किसका कहा हुआ मिसरा है, मुझे याद नहीं, हॉं मददगार रहा सो हृदय से आभारी हूँ यह संकटमोचक मिसरा कहने वाले का। यही स्थिति उपयोग किये गये चित्र की है जो मेल में प्राप्त हुआ था। इसके भी मूल रचयिता का हृदय से आभारी हूँ।
दिलों के बीच ना बाकी बचे दीवार, होली में
उठे सबके दिलों से एक ही झंकार, होली में।जरा तो सोचिये पानी की किल्लत हो गयी कितनी
ना गीले रंग की अब कीजिये बौछार, होली में।
ना गीले रंग की अब कीजिये बौछार, होली में।
गुलालों से भरी थाली लिये हम राह तकते हैं
निकलता ही नहीं दिखता कोई इस बार होली में।
निकलता ही नहीं दिखता कोई इस बार होली में।
अजब ये शार्ट मैसेज का लगा है रोग दुनिया को
कोई खत ही नहीं आता है अब त्यौहार होली में।
कोई खत ही नहीं आता है अब त्यौहार होली में।
चलो बस एक दिन को भूल जायें दर्द के नग़्मे
खुशी के गीत गायें और बॉंटें प्यार होली में।
खुशी के गीत गायें और बॉंटें प्यार होली में।
समझ में कुछ नहीं आता कि इसका क्या करे कोई
बजट लेकर नया ईक आ गयी सरकार होली में।
बजट लेकर नया ईक आ गयी सरकार होली में।
बहुत बेचैन है ‘राही’ कोई खुशबू नहीं आती
बहुत बेरंग लगता है भरा गुलज़ार होली में।
बहुत बेरंग लगता है भरा गुलज़ार होली में।
तिलक राज कपूर 'राही' ग्वालियरी