Thursday, May 3, 2012

एक ताज़ा ग़ज़ल

बहुत दिनों के बाद कुछ समय निकल सका ग़ज़ल के लिये और एकाएक हो गई ये ग़ज़ल; जैसे कि आने को बेताब ही थी। प्रस्‍तुत है:

हुआ क्‍या है ज़माने को कोई निश्‍छल नहीं मिलता
किसी मासूम बच्‍चे सा कोई निर्मल नहीं मिलता।

युगों की प्‍यास क्‍या होती है वो बतलाएगा तुमको
जिसे मरुथल में मीलों तक कहीं बादल नहीं मिलता।

जुनूँ की हद से आगे जो निकल जाये शराफ़त में
हमें इस दौर में ऐसा कोई पागल नहीं मिलता।

यक़ीं कोशिश पे रखता हूँ, मगर मालूम है मुझको
अगर मर्जी़ न हो तेरी, किसी को फल नहीं मिलता।

जहॉं भी देखिये नक्‍़शे भरे होते हैं जंगल से
ज़मीं पर देखिये तो दूर तक जंगल नहीं मिलता।

समस्‍या में छुपा होगा, अगर कुछ हल निकलना है
नियति ही मान लें उसको, अगर कुछ हल नहीं मिलता।

हर इक पल जि़ंदगी का खुल के हमने जी लिया 'राही'
गुज़र जाता है जो इक बार फिर वो पल नहीं मिलता।

तिलक राज कपूर 'राही'

27 comments:

अनुपमा पाठक said...

बहुत खूब!
सादर!

अरुण चन्द्र रॉय said...

आपके ग़ज़ल की प्रतीक्षा रहती है... बहुत सुन्दर ग़ज़ल बनी है... पहला शेर सबसे प्रभावित करता है... वाकई बच्चो सा कोई और निर्मल नहीं...

वन्दना अवस्थी दुबे said...

युगों की प्‍यास क्‍या होती है वो बतलाएगा तुमको
जिसे मरुथल में मीलों तक कहीं बादल नहीं मिलता।
क्या बात है!!! बहुत खूब.

pran sharma said...

TILAK RAJ JI , LAMBE ANTRAAL KE BAAD
AAPKEE GAZAL PADH KAR AANANDIT HO
GAYAA HAI . EK - EK SHER UMDA HAI .

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जहॉं भी देखिये नक्‍शे भरे होते हैं जंगल से
ज़मीं पर देखिये तो दूर तक जंगल नहीं मिलता।
बहुत खूब ...सटीक कहा है ...खूबसूरत गजल

Randhir Singh Suman said...

nice

chandrabhan bhardwaj said...

Bhai Tilakraj ji
Bahut dinon ke baad apki ghazal padhane ko mili. bahut khoobsoorat ghazal hai har ek sher apne ap men poora aur bhavpurn. badhai

देवमणि पांडेय Devmani Pandey said...

ग़ज़ल अच्छी लगी। ताज़गी, रवानी और सहजता है-

यकीं कोशिश पे रखता हूँ, मगर मालूम है मुझको
अगर मर्जी़ न हो तेरी, किसी को फ़ल नहीं मिलता।

Madan Mohan 'Arvind' said...

Bahut khub.....Bahut khub....

Rachana said...

युगों की प्‍यास क्‍या होती है वो बतलाएगा तुमको
जिसे मरुथल में मीलों तक कहीं बादल नहीं मिलता।
bahut khubsurat bhav hain lajavab sher
rachana

ashok andrey said...

bahut badhiya gajal padwane ke liye aapka aabhar.iske har sher ne man ko chhuaa hai.

प्रदीप कांत said...

युगों की प्‍यास क्‍या होती है वो बतलाएगा तुमको
जिसे मरुथल में मीलों तक कहीं बादल नहीं मिलता।

डॉ. जेन्नी शबनम said...

सभी शेर लाजवाब, दाद स्वीकारें.

निर्मला कपिला said...

ीआपकी गज़ल के लिये हमारी प्यास भी किसी मरूस्थल के यात्री से कम नही होती। हमेशा की तरह शानदार ग्गज़ल---
युगों की प्‍यास क्‍या होती है वो बतलाएगा तुमको
जिसे मरुथल में मीलों तक कहीं बादल नहीं मिलता।

जुनूँ की हद से आगे जो निकल जाये शराफ़त में
हमें इस दौर में ऐसा कोई पागल नहीं मिलता।

यक़ीं कोशिश पे रखता हूँ, मगर मालूम है मुझको
अगर मर्जी़ न हो तेरी, किसी को फल नहीं मिलता।
ये तीनो शेर दिल को छू गये भाःऊट भाःऊट भाडःआआइ?

Rajeev Bharol said...

तिलक जी,
बहुत ही उम्दा गज़ल कही है.

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

सुन्दर मनोहारी रचना...बहुत बहुत बधाई...

VIJAY KUMAR VERMA said...

जुनूँ की हद से आगे जो निकल जाये शराफ़त में
हमें इस दौर में ऐसा कोई पागल नहीं मिलता।

बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल

Anju (Anu) Chaudhary said...

जिंदगी हैं ,पर इसे जीने का का कोई गुर नहीं मिलता
बंदगी हैं ,पर बंधन को कोई मंज़ूर नहीं करता ||..अनु

कविता रावत said...

यक़ीं कोशिश पे रखता हूँ, मगर मालूम है मुझको
अगर मर्जी़ न हो तेरी, किसी को फल नहीं मिलता।

समस्‍या में छुपा होगा, अगर कुछ हल निकलना है
नियति ही मान लें उसको, अगर कुछ हल नहीं मिलता।

...gahre bhav bhare hai gajal mein ..
bahut umda prastuti..aabhar!

Er. सत्यम शिवम said...

सूचनाः

"साहित्य प्रेमी संघ" www.sahityapremisangh.com की आगामी पत्रिका हेतु आपकी इस साहित्यीक प्रविष्टि को चुना गया है।पत्रिका में आपके नाम और तस्वीर के साथ इस रचना को ससम्मान स्थान दिया जायेगा।आप चाहे तो अपना संक्षिप्त परिचय भी भेज दे।यह संदेश बस आपको सूचित करने हेतु है।हमारा कार्य है साहित्य की सुंदरतम रचनाओं को एक जगह संग्रहीत करना।यदि आपको कोई आपति हो तो हमे जरुर बताये।

भवदीय,

सम्पादकः
सत्यम शिवम
ईमेल:-contact@sahityapremisangh.com

Devi Nangrani said...

समस्‍या में छुपा होगा, अगर कुछ हल निकलना है
नियति ही मान लें उसको, अगर कुछ हल नहीं मिलता।

Bahut abhibhoot karta hua sher!!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...



♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥नव वर्ष मंगबलमय हो !♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥




हुआ क्‍या है ज़माने को कोई निश्‍छल नहीं मिलता
किसी मासूम बच्‍चे सा कोई निर्मल नहीं मिलता

यक़ीं कोशिश पे रखता हूँ, मगर मालूम है मुझको
अगर मर्जी़ न हो तेरी, किसी को फल नहीं मिलता

वाह वाऽह !
हर शेर शानदार !
क्या बात है !
आदरणीय तिलक राज कपूर 'राही' जी
आपकी ग़ज़लों को पढ़ने की इच्छा रहती है ...
लेकिन आप ब्लॉग पर क्यों सक्रिय नहीं हैं ?

आशा है सपरिवार स्वस्थ सानंद हैं
नई पोस्ट बदले हुए बहुत समय हो गया है …
आपकी प्रतीक्षा है सारे हिंदी ब्लॉगजगत को …
:)


नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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Unknown said...

आपकी यह रचना दिनांक 21.06.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/
पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।

जवाहर लाल सिंह said...

हर इक पल जि़ंदगी का खुल के हमने जी लिया 'राही'
गुज़र जाता है जो इक बार फिर वो पल नहीं मिलता।

bahut hee sundar!

Unknown said...

आपकी यह रचना निर्झर टाइम्स (http://nirjhar-times.blogspot.in) पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।

संजय भास्‍कर said...

जुनूँ की हद से आगे जो निकल जाये शराफ़त में
हमें इस दौर में ऐसा कोई पागल नहीं मिलता।

बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल !!!

ashok andrey said...

हुआ क्या है जमाने को कोई निश्छल नहीं मिलता
किसी मासूम बच्चे सा कोई निर्मल नहीं मिलता.
मन को छू गयी,बधाई.