बहुत दिनों के बाद कुछ समय निकल सका ग़ज़ल के लिये और एकाएक हो गई ये ग़ज़ल; जैसे कि आने को बेताब ही थी। प्रस्तुत है:
हुआ क्या है ज़माने को कोई निश्छल नहीं मिलता
किसी मासूम बच्चे सा कोई निर्मल नहीं मिलता।
युगों की प्यास क्या होती है वो बतलाएगा तुमको
जिसे मरुथल में मीलों तक कहीं बादल नहीं मिलता।
जुनूँ की हद से आगे जो निकल जाये शराफ़त में
हमें इस दौर में ऐसा कोई पागल नहीं मिलता।
यक़ीं कोशिश पे रखता हूँ, मगर मालूम है मुझको
अगर मर्जी़ न हो तेरी, किसी को फल नहीं मिलता।
जहॉं भी देखिये नक़्शे भरे होते हैं जंगल से
ज़मीं पर देखिये तो दूर तक जंगल नहीं मिलता।
समस्या में छुपा होगा, अगर कुछ हल निकलना है
नियति ही मान लें उसको, अगर कुछ हल नहीं मिलता।
हर इक पल जि़ंदगी का खुल के हमने जी लिया 'राही'
गुज़र जाता है जो इक बार फिर वो पल नहीं मिलता।
तिलक राज कपूर 'राही'
हुआ क्या है ज़माने को कोई निश्छल नहीं मिलता
किसी मासूम बच्चे सा कोई निर्मल नहीं मिलता।
युगों की प्यास क्या होती है वो बतलाएगा तुमको
जिसे मरुथल में मीलों तक कहीं बादल नहीं मिलता।
जुनूँ की हद से आगे जो निकल जाये शराफ़त में
हमें इस दौर में ऐसा कोई पागल नहीं मिलता।
यक़ीं कोशिश पे रखता हूँ, मगर मालूम है मुझको
अगर मर्जी़ न हो तेरी, किसी को फल नहीं मिलता।
जहॉं भी देखिये नक़्शे भरे होते हैं जंगल से
ज़मीं पर देखिये तो दूर तक जंगल नहीं मिलता।
समस्या में छुपा होगा, अगर कुछ हल निकलना है
नियति ही मान लें उसको, अगर कुछ हल नहीं मिलता।
हर इक पल जि़ंदगी का खुल के हमने जी लिया 'राही'
गुज़र जाता है जो इक बार फिर वो पल नहीं मिलता।
तिलक राज कपूर 'राही'
27 comments:
बहुत खूब!
सादर!
आपके ग़ज़ल की प्रतीक्षा रहती है... बहुत सुन्दर ग़ज़ल बनी है... पहला शेर सबसे प्रभावित करता है... वाकई बच्चो सा कोई और निर्मल नहीं...
युगों की प्यास क्या होती है वो बतलाएगा तुमको
जिसे मरुथल में मीलों तक कहीं बादल नहीं मिलता।
क्या बात है!!! बहुत खूब.
TILAK RAJ JI , LAMBE ANTRAAL KE BAAD
AAPKEE GAZAL PADH KAR AANANDIT HO
GAYAA HAI . EK - EK SHER UMDA HAI .
जहॉं भी देखिये नक्शे भरे होते हैं जंगल से
ज़मीं पर देखिये तो दूर तक जंगल नहीं मिलता।
बहुत खूब ...सटीक कहा है ...खूबसूरत गजल
nice
Bhai Tilakraj ji
Bahut dinon ke baad apki ghazal padhane ko mili. bahut khoobsoorat ghazal hai har ek sher apne ap men poora aur bhavpurn. badhai
ग़ज़ल अच्छी लगी। ताज़गी, रवानी और सहजता है-
यकीं कोशिश पे रखता हूँ, मगर मालूम है मुझको
अगर मर्जी़ न हो तेरी, किसी को फ़ल नहीं मिलता।
Bahut khub.....Bahut khub....
युगों की प्यास क्या होती है वो बतलाएगा तुमको
जिसे मरुथल में मीलों तक कहीं बादल नहीं मिलता।
bahut khubsurat bhav hain lajavab sher
rachana
bahut badhiya gajal padwane ke liye aapka aabhar.iske har sher ne man ko chhuaa hai.
युगों की प्यास क्या होती है वो बतलाएगा तुमको
जिसे मरुथल में मीलों तक कहीं बादल नहीं मिलता।
सभी शेर लाजवाब, दाद स्वीकारें.
ीआपकी गज़ल के लिये हमारी प्यास भी किसी मरूस्थल के यात्री से कम नही होती। हमेशा की तरह शानदार ग्गज़ल---
युगों की प्यास क्या होती है वो बतलाएगा तुमको
जिसे मरुथल में मीलों तक कहीं बादल नहीं मिलता।
जुनूँ की हद से आगे जो निकल जाये शराफ़त में
हमें इस दौर में ऐसा कोई पागल नहीं मिलता।
यक़ीं कोशिश पे रखता हूँ, मगर मालूम है मुझको
अगर मर्जी़ न हो तेरी, किसी को फल नहीं मिलता।
ये तीनो शेर दिल को छू गये भाःऊट भाःऊट भाडःआआइ?
तिलक जी,
बहुत ही उम्दा गज़ल कही है.
सुन्दर मनोहारी रचना...बहुत बहुत बधाई...
जुनूँ की हद से आगे जो निकल जाये शराफ़त में
हमें इस दौर में ऐसा कोई पागल नहीं मिलता।
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल
जिंदगी हैं ,पर इसे जीने का का कोई गुर नहीं मिलता
बंदगी हैं ,पर बंधन को कोई मंज़ूर नहीं करता ||..अनु
यक़ीं कोशिश पे रखता हूँ, मगर मालूम है मुझको
अगर मर्जी़ न हो तेरी, किसी को फल नहीं मिलता।
समस्या में छुपा होगा, अगर कुछ हल निकलना है
नियति ही मान लें उसको, अगर कुछ हल नहीं मिलता।
...gahre bhav bhare hai gajal mein ..
bahut umda prastuti..aabhar!
सूचनाः
"साहित्य प्रेमी संघ" www.sahityapremisangh.com की आगामी पत्रिका हेतु आपकी इस साहित्यीक प्रविष्टि को चुना गया है।पत्रिका में आपके नाम और तस्वीर के साथ इस रचना को ससम्मान स्थान दिया जायेगा।आप चाहे तो अपना संक्षिप्त परिचय भी भेज दे।यह संदेश बस आपको सूचित करने हेतु है।हमारा कार्य है साहित्य की सुंदरतम रचनाओं को एक जगह संग्रहीत करना।यदि आपको कोई आपति हो तो हमे जरुर बताये।
भवदीय,
सम्पादकः
सत्यम शिवम
ईमेल:-contact@sahityapremisangh.com
समस्या में छुपा होगा, अगर कुछ हल निकलना है
नियति ही मान लें उसको, अगर कुछ हल नहीं मिलता।
Bahut abhibhoot karta hua sher!!
♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥नव वर्ष मंगबलमय हो !♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
हुआ क्या है ज़माने को कोई निश्छल नहीं मिलता
किसी मासूम बच्चे सा कोई निर्मल नहीं मिलता
यक़ीं कोशिश पे रखता हूँ, मगर मालूम है मुझको
अगर मर्जी़ न हो तेरी, किसी को फल नहीं मिलता
वाह वाऽह !
हर शेर शानदार !
क्या बात है !
आदरणीय तिलक राज कपूर 'राही' जी
आपकी ग़ज़लों को पढ़ने की इच्छा रहती है ...
लेकिन आप ब्लॉग पर क्यों सक्रिय नहीं हैं ?
आशा है सपरिवार स्वस्थ सानंद हैं
नई पोस्ट बदले हुए बहुत समय हो गया है …
आपकी प्रतीक्षा है सारे हिंदी ब्लॉगजगत को …
:)
नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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आपकी यह रचना दिनांक 21.06.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/
पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
हर इक पल जि़ंदगी का खुल के हमने जी लिया 'राही'
गुज़र जाता है जो इक बार फिर वो पल नहीं मिलता।
bahut hee sundar!
आपकी यह रचना निर्झर टाइम्स (http://nirjhar-times.blogspot.in) पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
जुनूँ की हद से आगे जो निकल जाये शराफ़त में
हमें इस दौर में ऐसा कोई पागल नहीं मिलता।
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल !!!
हुआ क्या है जमाने को कोई निश्छल नहीं मिलता
किसी मासूम बच्चे सा कोई निर्मल नहीं मिलता.
मन को छू गयी,बधाई.
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