Thursday, December 31, 2009

नव वर्ष की हार्दिक बधाई

आज इस ब्‍लॉग पर पहली पोस्‍ट लगाते हुए मैं विशेष आभार व्‍यक्‍त करता हूँ युवा शायर वीनस 'केसरी' का जिनके विशेष अनुरोध पर इस ब्‍लॉग का विचार आया।
एक रूहानी ग़ज़ल 
(मैं हृदय से आभारी हूँ वरिष्‍ठ साहित्‍यकार आदरणीय महावीर शर्मा जी का जिन्‍होंने इस ग़ज़ल के लिये तमाम व्‍यस्‍तताओं के बीच भी मार्गदर्शन व आशीर्वाद का समय निकाला)
(ग़ज़ल के खयालों के लिये मैं हृदय से आभारी हूँ अपने आदरणीय पिता श्री प्रकाश लाल कपूर का जिन्‍होंने हर कदम पर मुझे रुहानी ओज से ओत प्रोत किया और उर्दू, अरबी, फारसी के शब्‍दों, कहावतों, मुहावरों से मेरा पहला परिचय कराया)


न मैं हूँ, न तू है,
न अब आरजू़ है।

खयालों में छाई,
तिरी जुस्‍तजू है।

जिसे ढूंढता हूँ,
वही चार सू है।

ये तन्‍हाई, जैसे,
तिरी गुफ़्तगू है।

न ये जिस्‍म मेरा,
न मेरा लहू है।

तिरे नूर से ही
जहॉं सुर्खरू है।

तुझे जैसा सोचूँ,
लगे हू-ब-हू है।

मैं अनहद में डूबा,
औ तू रु-ब-रू है।

मैं ‘राही’, तू मुझमें,
बसी रंगो-बू है।


तिलक राज कपूर 'राही' ग्‍वालियरी


मुतकारिब मुरब्‍बा सालिम बह्र, फ़(1), ऊ(2), लुन(2) दो बार प्रत्‍येक मिसरे में