मन में एक विचार आया कि क्यूँ न इस बार ‘दीपक’ को ही अभिव्यक्ति का माध्यम चुना जाये। प्रस्तुत ग़ज़ल में ‘दीपक’ के माध्यम से संयोजन का वही प्रयास है। मुझे काव्य के तत्वों का केवल आधार ज्ञान ही है इसलिये कहीं कुछ त्रुटि हुई हो तो आपकी टिप्पणी के माध्यम से ज्ञानवर्धन की अपेक्षा है।
कहने की आवश्यकता नहीं कि ग़ज़ल गैर मुरद्दफ़ है और इसके अ’र्कान फ़़ायलातुन, फ़़ायलातुन, फ़़ायलातुन, फ़़ायलुन यानि 2122, 2122, 2122, 212 हैं जो मेरी प्रिय बह्र है।
एक ग़ज़ल
वायदा है मैं तिमिर से हर घड़ी टकराउँगा
स्नेह पाया है जगत से रौशनी दे जाउँगा।
कौन हूँ मैं बूझ पाओ तो मुझे तुम बूझ लो
लौ पुराना प्रश्न है जो मैं नहीं सुलझाउँगा।
बात जब मेरी हुई तो तेल बाती की हुई
मैं रहा जिस पात्र में गुणगान उसके गाउँगा।
एक बच्चा मित्रता करने पटाखों से चला
आग से मत खेलना उसको यही समझाउँगा।
खुद अगर कोई पतंगा आ गिरा आग़ोश में
हाथ मलने के सिवा कुछ भी नहीं कर पाउँगा।
एक अनबन सी रही बारूद की मुझसे मगर,
वो गले मेरे लगा तो किस तरह ठुकराउँगा।
साथ में तूफॉं लिये अब ऑंधियॉं चलने लगीं
बुझ गया तो मैं मिसालों में दिया कहलाउँगा।
कब्र, मंदिर, राह हो या फिर मज़ारे पीर हो
जिस जगह भी रख दिया, मैं रौशनी बिखराउँगा।
जो डगर मैनें चुनी वो आपको लगती कठिन
राह बारम्बार लेकिन मैं यही दुहराउँगा।
वक्त जाने का हुआ है भोर अब होने लगी
सूर्य से रिश्ता अजब है, वो गया तो आउँगा।
गर कभी मद्धम हवा निकली मुझे छूते हुए
नृत्य में खो जाउँगा, इतराउँगा, इठलाउँगा।
धर्म, जात औ, उम्र क्या औ कर्म का अंतर है क्या
जब मुझे ‘राही’ दिखेगा, राह मैं दिखलाउँगा।
तिलक राज कपूर ‘राही’ ग्वालियरी
42 comments:
साथ में तूफॉं लिये अब ऑंधियॉं चलने लगीं
बुझ गया तो मैं मिसालों में दिया कहलाउँगा।
कब्र, मंदिर, राह हो या फिर मज़ारे पीर हो
जिस जगह भी रख दिया, मैं रौशनी बिखराउँगा।
वाह , बहुत खूबसूरत गज़ल ...प्रेरणादायक
खूबसूरत गज़ल ...
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं...
एक बच्चा मित्रता करने पटाखों से चला
आग से मत खेलना उसको यही समझाउँगा।
कब्र, मंदिर, राह हो या फिर मज़ारे पीर हो
जिस जगह भी रख दिया, मैं रौशनी बिखराउँगा।
बहुत सार्थक सन्देश देती हुई खूबसूरत ग़ज़ल । तिलक जी , दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें ।
बहुत खूबसूरत गज़ल
आपको, आपके परिवार को एवम इष्ट मित्रों को
दिपावली पर्व
की हार्दिक शुभकामनाएं!
मेरि तरफ से मुबारकबादी क़ुबूल किजिये.
जो डगर मैनें चुनी वो आपको लगती कठिन
राह बारम्बार लेकिन मैं यही दुहराउँगा।
बहुत सुन्दर तिलक जी.
वक्त जाने का हुआ है भोर अब होने लगी
सूर्य से रिश्ता अजब है, वो गया तो आउँगा।
क्या बात है. मन खुश हो जाता है, इतने सुन्दर उपमेय और उपमानों को देख के.
दीवाली मुबारक हो.
दीपावली पर दीप मैं भी एक जलाऊंगा।
वाह ! मतला ही बहुत बेहतरीन है
जो डगर मैनें चुनी वो आपको लगती कठिन
राह बारम्बार लेकिन मैं यही दुहराउँगा।
सहस और आत्मविश्वास से परिपूर्ण
धर्म, जात औ, उम्र क्या औ कर्म का अंतर है क्या
जब मुझे ‘राही’ दिखेगा, राह मैं दिखलाउँगा।
बहुत बड़ी बात है .....बहुत ही कमाल की ग़ज़ल प्रस्तुत की है आपने
आपको सपरिवार प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
उल्फ़त के दीप
वायदा है मैं तिमिर से हर घड़ी टकराउँगा
स्नेह पाया है जगत से रौशनी दे जाउँगा।
वाह...
दीपावली पर बेहतरीन ग़ज़ल का तोहफ़ा दिया है आपने.
आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.
वाह! क्या बात है! बहुत खूब!
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामना!
वाह,
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल. सभी अशआर अच्छे हैं. "कब्र" और "बारूद" वाला शेर खास तौर पर पसंद आये.
कब्र, मंदिर, राह हो या फिर मज़ारे पीर हो
जिस जगह भी रख दिया, मैं रौशनी बिखराउँगा।
जो डगर मैनें चुनी वो आपको लगती कठिन
राह बारम्बार लेकिन मैं यही दुहराउँगा।
बहुत ख़ूब तिलक जी !
आप को भी दीपावली बहुत बहुत मुबारक हो
कब्र, मंदिर, राह हो या फिर मज़ारे पीर हो
जिस जगह भी रख दिया, मैं रौशनी बिखराउँगा।
बहुत खूब....आपको भी दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें
आदरणीय श्री तिलक राज कपूर ‘राही’ ग्वालियरी साहब
प्रणाम !
पिछले दिनों … स्वास्थ्य और अन्य अव्यवस्थाओं के चलते उपस्थिति दर्ज़ नहीं करवा पाया , यद्यपि ख़ूबसूरत ग़ज़लें यहां आ'कर बराबर पढ़ता रहा हूं ।
आज की ग़ज़ल भी बहुत शानदार है । मतले से मक़्ते तक तमाम अश्'आर दिल पर असर छोड़ने में कामयाब हैं ।
बहुत ही ख़ूबसूरत मतला है …
वायदा है मैं तिमिर से हर घड़ी टकराउँगा
स्नेह पाया है जगत से रौशनी दे जाउँगा।
एक और बेहतरीन शे'र …
साथ में तूफॉं लिये अब ऑंधियॉं चलने लगीं
बुझ गया तो मैं मिसालों में दिया कहलाउँगा।
… और क़ुर्बान इस शे'र पर …
कब्र, मंदिर, राह हो या फिर मज़ारे पीर हो
जिस जगह भी रख दिया, मैं रौशनी बिखराउँगा।
निरपेक्ष रूप से परोपकार का संदेश देते मक़्ते की ख़ूबसूरती देखते ही बनती है … वाह वाऽऽह !
धर्म, जात औ, उम्र क्या औ कर्म का अंतर है क्या
जब मुझे ‘राही’ दिखेगा, राह मैं दिखलाउँगा।
दीप के माध्यम से कही गई इस पूरी ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत मुबारकबाद है जनाबे-मुहतरम !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत उम्दा!!
सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल 'समीर'
अच्छी लगी आपकी यह ग़ज़ल! कई शेर तो बहुत उम्दा लगे।
दीपावली की शुभकामनाएं !
उम्दा गजल।
प्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
http://vyangyalok.blogspot.com
व्यंग्य और व्यंग्यलोक
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बेहद खूबसूरत ग़ज़ल...
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!
वाह बेहतरीन शेरों के साथ खूबसूरत गज़ल्।
दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।
वक्त जाने का हुआ है भोर अब होने लगी
सूर्य से रिश्ता अजब है, वो गया तो आउँगा।
Haasil-e-ghazal.
"धर्म, जात औ, उम्र क्या औ कर्म का अंतर है क्या
जब मुझे ‘राही’ दिखेगा, राह मैं दिखलाउँगा।"...
ईश्वर करे दिया और रोशनी का यह चरित्र कभी ना बदले ! सुन्दर ग़ज़ल !
दीपावली कि हार्दिक शुभकामनाये ......
मेरा पोर्ट्रेट ......My portrait
बात जब मेरी हुई तो तेल बाती की हुई
मैं रहा जिस पात्र में गुणगान उसके गाउँगा।
ये पंक्तियाँ बहुत भाईं ......दीपावली की बहुत बहुत बधाई ..
आपको और आपके परिवार के समस्त सदस्यों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !
बहुत सुन्दर ग़ज़ल है ... और इस शेर के तो क्या कहने
साथ में तूफॉं लिये अब ऑंधियॉं चलने लगीं
बुझ गया तो मैं मिसालों में दिया कहलाउँगा।
जो डगर मैनें चुनी वो आपको लगती कठिन
राह बारम्बार लेकिन मैं यही दुहराउँगा।
दिवाली के मौके पर कही गयी अत्यंत प्रभावशाली गजल है.
जब मुझे ‘राही’ दिखेगा, राह मैं दिखलाउँगा।"... बहुत सुंदर !!
दीपावली की शुभकामनाये.
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !
मै आज सुबह याद कर रही थी कि इस बार भाई साहिब की गज़ल नही आयी। अभी ब्लागर पर नज़र गयी तो गज़ल हाजिर मिली। पूरी गज़ल बहुत सुन्दर समसामयिक है
साथ में तूफॉं लिये अब ऑंधियॉं चलने लगीं
बुझ गया तो मैं मिसालों में दिया कहलाउँगा।
कब्र, मंदिर, राह हो या फिर मज़ारे पीर हो
जिस जगह भी रख दिया, मैं रौशनी बिखराउँगा।
जो डगर मैनें चुनी वो आपको लगती कठिन
राह बारम्बार लेकिन मैं यही दुहराउँगा।
वक्त जाने का हुआ है भोर अब होने लगी
सूर्य से रिश्ता अजब है, वो गया तो आउँगा।
सभी शेर कमाल के हैं\ बहुत बहुत बधाई।
आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।
धर्म, जात औ, उम्र क्या औ कर्म का अंतर है क्या
जब मुझे ‘राही’ दिखेगा, राह मैं दिखलाउँगा।
सारी बातों का सार यही है कि :
दीप जलता है जगत में रोशनी देने के लिए,
नहीं फिक्र है कौन क्या सोचता है उसके लिए,
हो अँधेरा जहाँ भी उसे रोशन वो कर जायेगा,
इंसान हो उसको जलाये वो दिशा दे जायेगा.
भर दे दिल मेँ यह दिवाली आपके ख़ुशियोँ के रंग: डा. अहमद अली बर्की आज़मी
भर दे दिल मेँ यह दिवाली आपके ख़ुशियोँ के रंग: डा. अहमद अली बर्की आज़मी
भर दे दिल मेँ यह दिवाली आपके ख़ुशियोँ के रंग
आपके इस रंग मेँ पडने न पाए कोई भंग
जो जहाँ हो उसको हासिल हो वहाँ ज़ेहनी सुकून
दूर हो जाए जहाँ से बुगज़, नफरत और जंग
अपने दिल को साफ रखिए आप मिसले आइना
आपकी शमशीरे ईमाँ पर न लगने पाए ज़ंग
है ज़रूररत वक्त की आपस में रखिए मेल जोल
भाइचारा देख कर सब आपका रह जाएँ दंग
आइए आपस मेँ मिल कर यह प्रतिज्ञा हम करेँ
रंग मे अपनी दिवाली के न पडने देँगे भंग
महफ़िले शेरो सुख़न मेँ जश्न का माहौल है
कीजिए नग़मा सराई आप बर्क़ी लेके चंग
डा. अहमद अली बर्की आज़मी
कौन हूँ मैं बूझ पाओ तो मुझे तुम बूझ लो
लौ पुराना प्रश्न है जो मैं नहीं सुलझाउँगा।
बात जब मेरी हुई तो तेल बाती की हुई
मैं रहा जिस पात्र में गुणगान उसके गाउँगा।
कब्र, मंदिर, राह हो या फिर मज़ारे पीर हो
जिस जगह भी रख दिया, मैं रौशनी बिखराउँगा।
बेहतरीन शेर
अतिसुन्दर !
एक दार्शनिक ग़ज़ल के लिए बधाई !
इसे कहते हैं ...कमाल...गज़ब....बेमिसाल...अद्भुत...क्या क्या कहूँ...गज़ल पढते पढते हज़ारों बार आपको दुआ दी है...भाई वाह...जियो.
नीरज
धर्म, जात औ, उम्र क्या औ कर्म का अंतर है क्या
जब मुझे ‘राही’ दिखेगा, राह मैं दिखलाउँगा।
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सराहनीय लेखन....हेतु बधाइयाँ...ऽ. ऽ. ऽ
चिठ्ठाकारी के लिए, मुझे आप पर गर्व।
मंगलमय हो आपको, सदा ज्योति का पर्व॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
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एक दिन आयी दिवाली जेब खाली हो रही।
माफियों के घरों में डेली दिवाली हो रही॥
सेक्स परिर्वतन का कुछ चक्कर है ऐसा चल पड़ा-
जो कभी थाना था, वो अब कोतवाली हो रही॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
खूबसूरत शब्दावली
और प्रभावशाली प्रतीक कI
बहुत ही सुन्दर उपयोग ....
एक सार्थक , ,
पठनीय ,,
और
मननीय रचना .
बहुत अच्छी ग़ज़ल . . . .
कब्र, मंदिर, राह हो या फिर मज़ारे पीर हो
जिस जगह भी रख दिया, मैं रौशनी बिखराउँगा ...
तिलक राज जी ... इतनी लाजवाब ग़ज़ल हर सू रौशनी बिखेर रही है ... बहुत कमाल का लिखते हैं आप .... दीपावली की शुभ कामनाएं ....
कपूर साहब
दीवाली पर जलते चरागों जैसी रचना है ये....
सारे शेर बेहतरीन......
और ये शेर तो काबिले दाद......!!!!
एक बच्चा मित्रता करने पटाखों से चला
आग से मत खेलना उसको यही समझाउँगा।
और ये भी.....खूब रहा
एक अनबन सी रही बारूद की मुझसे मगर,
वो गले मेरे लगा तो किस तरह ठुकराउँगा।
behtareeen.............shandaar:)
कब्र, मंदिर, राह हो या फिर मज़ारे पीर हो
जिस जगह भी रख दिया, मैं रौशनी बिखराउँगा।
काश रोशनी की ऐसी ही कोई किरन आज के इंसान में होती तो ये आपस का सारा झगडा ही ख़त्म हो जाता !
आपकी पूरी ग़ज़ल मानवीय संवेदना का दस्तावेज है !
हर शेर में रोशनी की चमक है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
वायदा है मैं तिमिर से हर घड़ी टकराउँगा
स्नेह पाया है जगत से रौशनी दे जाउँगा।
....
स्नेह की रौशनी फ़ैलाने से पवित्र कार्य कोई हो नहीं सकते. बहुत ही नेक ख्याल.
... shaandaar gajal ... badhaai !!!
बहुत खूबसूरत गज़ल
Dil se likhi gayi umda gajal ......
http://amrendra-shukla.blogspot.com
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