ग़ज़ल के पेच-ओ-खम बारीकियों से दूर रहता हूँ
नया अहसास होता है तो बस इक शेर कहता हूँ।
कभी-कभी सीधे-सादे अहसास सीधे-सादे लफ़्ज़ों में बयॉं करने का दिल करता है और ऐसे में कुछ अशआर जन्म लेते हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति आज प्रस्तुत इस ग़ज़ल में है। एक बहुत सीधी सादी बात आई कि क्या इस बार करवा चौथ पर कुछ नहीं कह रहे। पहले करवा चौथ पर बिटिया की एक सीधी-सादी फ़रमाईश को पूरा करना तो एक ऐसी स्थिति हो गयी कि रुका नहीं गया। बस उसी का परिणाम है ये सीधी-सादी ग़ज़ल बिना किसी पेच-ओ-खम के।
हुस्न आया तो लजाना आ गया
कनखियों से मुस्कराना आ गया।
होंठ होंठों में दबाना आ गया
देख कर नज़रें चुराना आ गया।
चाहते हैं आप ऐसा जानकर
फ़ूल वेणी में सजाना आ गया।
जि़न्दगी में आप का आना सनम
यूँ लगा जैसे खजाना आ गया।
आपके अहसास ने छूकर कहा
मीत जन्मों का पुराना आ गया।
इक अलग अहसास करवा चौथ है
ये लगा जब दिल लगाना आ गया।
साथ करवा चौथ का उत्सव लिये
जि़न्दगी में इक सयाना आ गया।
ख़ैरियत में आपकी उपवास रख
अब हमें भी दिन बिताना आ गया।
दूर झुरमुट में छुपे उस चॉंद को
सॉंझ ढलते ही बुलाना आ गया।
तिलक राज कपूर 'राही'
नया अहसास होता है तो बस इक शेर कहता हूँ।
कभी-कभी सीधे-सादे अहसास सीधे-सादे लफ़्ज़ों में बयॉं करने का दिल करता है और ऐसे में कुछ अशआर जन्म लेते हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति आज प्रस्तुत इस ग़ज़ल में है। एक बहुत सीधी सादी बात आई कि क्या इस बार करवा चौथ पर कुछ नहीं कह रहे। पहले करवा चौथ पर बिटिया की एक सीधी-सादी फ़रमाईश को पूरा करना तो एक ऐसी स्थिति हो गयी कि रुका नहीं गया। बस उसी का परिणाम है ये सीधी-सादी ग़ज़ल बिना किसी पेच-ओ-खम के।
हुस्न आया तो लजाना आ गया
कनखियों से मुस्कराना आ गया।
होंठ होंठों में दबाना आ गया
देख कर नज़रें चुराना आ गया।
चाहते हैं आप ऐसा जानकर
फ़ूल वेणी में सजाना आ गया।
जि़न्दगी में आप का आना सनम
यूँ लगा जैसे खजाना आ गया।
आपके अहसास ने छूकर कहा
मीत जन्मों का पुराना आ गया।
इक अलग अहसास करवा चौथ है
ये लगा जब दिल लगाना आ गया।
साथ करवा चौथ का उत्सव लिये
जि़न्दगी में इक सयाना आ गया।
ख़ैरियत में आपकी उपवास रख
अब हमें भी दिन बिताना आ गया।
दूर झुरमुट में छुपे उस चॉंद को
सॉंझ ढलते ही बुलाना आ गया।
तिलक राज कपूर 'राही'
15 comments:
बिना पेचोखम के क्लेम के बहुत ही सुंदर ग़ज़ल। करवा चौथ का ग़ज़ल में खूबसूरत ज़िक्र। बहुत बहुत बधाई सर जी। हर शेर की अपनी अलग कहानी और अपनी अलग ताज़गी। बहुत खूब।
गुजर गया एक साल
इक अलग अहसास करवा चौथ है
ये लगा जब दिल लगाना आ गया।
बहुत खूब, सरल और सहज लेकिन अन्दर तक छू लेने वाला अहसास. मुझे लगता है आज इसी तरह की ग़ज़लों की जरुरत है. यही अशआर हैं जो बिना किसी खींच-तान के सीधे दिल से निकलते हैं और दिल तक पहुँचते हैं.
सादर
मदन मोहन 'अरविन्द'
bahut khoobsoorat , sach kaha aapne ...kitni hi najme bachchon ko saamne rakh kar jee huee hoti hain ..badhaaee ...
Bahut achhhi lagi gazal ...bahut khub !
वाह - वा !
तिलक राज जी ,, बहुत खूब अश`आर कहे हैं
हर शेर एक अलग-सी ताज़गी लिए हुए है
और अपनी कहानी आप कह रहा है...
मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ .
nice
bahut lajwab bhavon se sajai hai aapne yeh gajal,-
aapke ehsaas ne chhukar kahaa
meet janmo ka purana aa gayaa.
meri aur se badhai.
आपके अहसास ने छूकर कहा
मीत जन्मों का पुराना आ गया।
सुंदर!
आदरणीय तिलक राज जी,
वन्दे !
आपके ब्लोग पर मैं आता रहता हूं !
आप लगातार अच्छा लिख रहे हैं !
यह कविता भी बहुत अच्छी लगी-बधाई !
इस कविता की यह पंक्तियां रोचक हैं-
"साथ करवा चौथ का उत्सव लिये
जि़न्दगी में इक सयाना आ गया।
ख़ैरियत में आपकी उपवास रख
अब हमें भी दिन बिताना आ गया।
दूर झुरमुट में छुपे उस चॉंद को
सॉंझ ढलते ही बुलाना आ गया।"
जनाब करवा चौथ गुज़रे बाद पहुंचा हूँ...फिर भी ग़ज़ल की ख़ूबसूरती ने कायल कर दिया है...बिटिया अखंड सौभाग्यवती हो...इश्वर से ये ही कामना करता हूँ...कुछ एक शेर तो आपने कमाल के कहें हैं...कमाल मतलब गज़ब...
नीरज
ये सीधी-सादी ग़ज़ल बहुत सुंदर, सार्थक और सुसंस्कारित है।
bahut sunder rachna hai, padhna achha laga
shubhkamnayen
आपकी गज़ल का तो मुझे बेसबरी से इन्तज़ार रहता है लेकिन आजकल रोज़ नेट पर बैठ नही पाती इस लिये ये गज़ल मेरी नज़र से छुपी रह गयी\ आपकी शायरी पर क्या कहूँ--बस कमाल है । सोच रही हूँ किसी एक शेर पर कुछ कहूँ तो बाकी गज़ल की शान मे गुस्ताखी होगी। हर एक शेर व्रत रखने वाली यानी भाभी जी की बिन्दी की तरह चमक रहा है देर से ही सही आप दोनो को व्रत की हार्दिक शुभकामनायें और दीपावली की भी मंगल कामनायें। बस आज कल केवले अपनी पसंद के कुछ ब्लागज़ पर ही जा पा रही हूंम दिन मे दो चार बस. स्वस्थ होते ही लौटती हूँ। धन्यवाद।
तिलक भाई जी ,
आप की गज़ल पढ़, हमारी
भाभी जी को शर्माना आ गया ||
शुभकामनाएँ!
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