देखकर लोकतंत्र तालों में
लोग तब्दील हैं मशालों में।
अब तो उत्तर बहुत कठिन होंगे
इस दफ़्अ: आग है सवालों में।
कोंपलों के भी देखिये तेवर
वो बदलने लगी हैं भालों में।
एकता क्या है अब वो देखेंगे
बॉंटते आये हैं जो पालों में।
वायदे तो बहुत हुए लेकिन
क्या मिला है स्वतंत्र सालों में।
जो हमारे लहू में होनी थी
वो ही लाली है उनके गालों में।
आदमीयत कभी तो समझेंगे
भेडि़ये आदमी की खालों में।
इस लड़ाई में मिट गये हम तो
फिर मिलेंगे तुम्हें मिसालों में।
मंजि़लें ठानकर ये निकले हैं
अब न 'राही' फ़ँसेंगे चालों में।
बह्र: फ़ायलुन्, फ़ायलुन्, मफ़ाईलुन्
37 comments:
तीखे तेवर और बुलंद हौसलों से लबरेज़ ग़ज़ल !
बहुत सारी बधाईयाँ !!
समयानुसार बहुत साहसिक ग़ज़ल है ।
बेहद शानदार गज़ल्।
KYA TEWAR HAIN GAZAL KE ! EK - EK
SHER NE DIL KO HILAA KAR RAKH DIYA
HAI . PADH KAR SOOYEE ATMA JAAG
UTHEE HAI .
जो हमारे लहू में होनी थी
वो ही लाली है उनके गालों में।
आदमीयत कभी तो समझेंगे
भेडि़ये आदमी की खालों में।
Behtareen gazal!
बहुत खूब...
अब तो उत्तर बहुत कठिन होंगे
इस दफ़्अ: आग है सवालों में।
ग़ज़ल के शेर में सुलग रही आग बहुत अच्छी लगी, शुभकामनाएं तिलक राज जी.
ये एक प्रबुद्ध शायर की और से अपने प्रबुद्ध पाठकों के लिए बेजोड़ ग़ज़ल है. इस के हर शेर में खरे सोने सी सच्चाई है. आज जो आमजन सोच और कर रहा है उसे बहुत पुख्ता अंदाज़ में तिलक राज जी ने अपने अशारों में ढाल दिया है. ग़ज़ल के खजाने में जो शेर जमा हैं उन में किसी एक को अलग से कोट किया ही नहीं जा सकता क्यूँ की पूरी ग़ज़ल एक अलग अंदाज़ वाले तेवर में बंधी हुई है. ऐसी ग़ज़ल की तारीफ़ लफ़्ज़ों में नहीं की जा सकती इसके लिए तो तालियाँ बजती हैं...वाह कपूर साहब वाह...जिंदाबाद...ज़िन्दाबाद...
नीरज
कितनी उल्टी दुनिया,
कितना उल्टा ज़माना,
जिन्हें होना था जेलखानों में,
उनके हाथों में है जेलखाना॥
Ab koi naaraaz bhi ho to kya.. Bigul baj gaya hai.. Kavi ki lekhni talwaar ban chuki hai... Bahut hi lajwaab aur umda gazal... Har sher hunkaarta huva... Badhaai Tilak Raj JI ..
आदमीयत कभी तो समझेंगे
भेडि़ये आदमी की खालों में।
sari ki sari ghazal ke tewar schayion ke saamne aaina bankar khade hain
Daad ke saath
Devi Nangrani
तिलक जी,
बहुत ही खूबसूरत सामायिक गज़ल. मतला बहुत सुंदर और बाकी के शेर भी एक से बढ़ कर एक.
अब तो उत्तर बहुत कठिन होंगे
इस दफ़्अ: आग है सवालों में।
जो हमारे लहू में होनी थी
वो ही लाली है उनके गालों में।
लाजवाब!
ग़ज़ल में सामयिकता और प्रबुद्धता का खूबसूरत समायोजन है। बाइत्तेफाक़ देश इस समय आंदोलित भी है इसलिए इस ग़ज़ल की सार्थकता भी स्वयंसिद्ध है।
जैसा की अक्सर होता है, बेहतरीन...
Bahut Umda gazal hai....Badhai...
बहुत सामयिक और सशक्त गज़ल.
आज के हालात को
बिलकुल सही रूप से दर्शाते हुए
बहुत कामयाब और यादगार अश`आर .....
ढेरों मुबारकबाद .
मैं आप सभी का हृदय से आभारी हूँ कि आपने अपनी व्यस्तता में से समय निकाल कर इस ग़ज़ल की सामयिकता को सराहा।
कल इसका एक मुख्य शेर छूट गया था जो अब सम्म्िलित कर लिया है:
इस लड़ाई में मिट गये हम तो
फिर मिलेंगे तुम्हें मिसालों में।
इस बीच एक अपूर्ण शेर भी पूरा हो गया जो सम्मिलित कर लिया है:
वायदे तो बहुत हुए लेकिन
क्या मिला है स्वतंत्र सालों में।
इतनी सुंदर सामयिक ग़ज़ल के लिए बधाई।
रास्ते की धूल" पर हीरे बिछाने का हुनर
आपने सीखा कहाँ से फ़न बड़ा प्यारा लगा
चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क
kyaa lajabaa kahaa ji chahtaa hai kalam choomloon .apne bhopal ka chamkayaa.hum abhi Houstonn men hai
aanepr miloogaa.
behtareen gazl ke liye shatshat vadhyeeyaan.
dr jaijairam anand
वायदे तो बहुत हुए लेकिन
क्या मिला है स्वतंत्र सालों में।
जो हमारे लहू में होनी थी
वो ही लाली है उनके गालों में।
सटीक और समसामयिक गज़ल ... बहुत पसंद आई ..आभार
भाई तिलक जी
बहुत खूब कही है आपने यह ग़ज़ल। एक एक शेर आज के हालात को बयां कर रहा है। आज जो समय का सच है, उस पर यह ग़ज़ल पूरी तरह से फिट बैठती है। बधाई !
जो हमारे लहू में होनी थी
वो ही लाली है उनके गालों में।
uf kya tevar hai
bahut sunder likha hai .puri gazal kamal hai
saader
rachana
aaz ke halat ko ukerati saarthak rachna, badhyee
Tilak ji.....Bahut si sahi shabdon main chiyraN......
lag raha hai yuvak aur Vriddh sabhi ki yahi iccha hai....Parivartan sahi disha main jeevan ka dhyaya hona chahiye...
wishes to you for poem and people of right minded to take issues in their hands for Good...
"इस लड़ाई में मिट गये हम तो
फिर मिलेंगे तुम्हें मिसालों में।"
आदरणीय कपूर साहब,देश के जज्बे और उसकी प्रतिक्रिया को इससे बहतरीन तरीके से सामने नहीं लाया जा सकता.आज हर व्यक्ति एक मसाल है ,हर एक व्यक्ति सत्ता धारियों के लिए भला बना हुआ है.गजल के माध्यम से सार्थक सन्देश,सामयिक दिशा-निर्देश.
इस ग़ज़ल मेँ आपने गागर मेँ सागर भर दिया । एक एक शे'र लाजवाब है ।
आपने समय के अनुकूल ग़ज़ल लिखी है aur उसमें वो सब कुछ उजागर कर दिया है जो आज हर दिल में है लेकिन वे लिख कर नहीं कह पा रहे हैं . बहुत अच्छा एवं. सार्थक सन्देश
बहुत सुन्दर ग़ज़ल.वर्तमान हालातों पर सटीक बैठती है. आपको बधाई!
-'सुधि'
तिलक साहब!!!!
नया अंदाज़ नए तेवर
पूरी ग़ज़ल बेहतरीन, तिस पर ये शेर तो माशा अल्लाह......!!!!
अब तो उत्तर बहुत कठिन होंगे
इस दफ़्अ: आग है सवालों में।
हालत को भांपते हुए बहुत मौजू ग़ज़ल है ..... बहुत बहुत शुभकामनायें !!!
अब सूरज को भला दिया क्या दिखलाना। आप तो स्वयं ही बेताज बादशाह हैं सर जी। छोटी बहर की ग़ज़ल और इतने पुख्ता खयालात के साथ। भई वाह। खास कर "दफ़्अ:" का प्रयोग बहुत ही सावधानी पूर्वक किया है आपने। मैं होता तो सीधे सीधे 'दफा' ही लिख मारता। चलो अब एक रास्ता सुझा दिया आपने। अरसे बाद आप के ब्लॉग पर कुछ पढ़ने को मिला आदरणीय, इसे जारी रखिएगा।
वायदे तो बहुत हुए लेकिन
क्या मिला है स्वतंत्र सालों में।
bahoot sunder. badhai.
लोग तब्दील है मशालो में.
इस दफअ: आग है सवालों में.
क्या क्रनिकारी शैली है.
यदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो कृपया मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html
जिन्हें ये ग़ज़ल नागवार गुजरे ,उनकी समझ पर विचार बेमानी है...
असंख्य हृदयों की बात लिख दी है आपने...हर शेर बेहतरीन लाजवाब ....
बेहद शानदार गज़ल्।
आपकी यह उत्कृष्ट रचना कल दिनांक 05.07.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया देखें और अपने सुझाव दें।
वायदे तो बहुत हुए लेकिन
क्या मिला है स्वतंत्र सालों में।-----
वर्तमान की सच्ची तस्वीर के साथ उकेरी गयी गयी
सटीक और सार्थक गज़ल
बहुत सुंदर
सादर
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