Saturday, September 11, 2010

ईद मुबारक


दो तीन दिन से मन में विचार चल रहा था कि ईद के मुबारक मौके पर एक ग़ज़ल ब्‍लॉग पर लगाई जाये। बहुत कोशिश करने पर भी सफ़ल नहीं रहा तो एक बार फिर मदद मिली कभी पढ़ी हुई एक ग़ज़ल से जिसका बस यही एक मिसरा याद रहा है कि 'मिलें क्‍यूँ न गले फिर शंभु और सत्‍तार होली में' । किसकी ग़ज़ल है यह याद नहीं। बस इसी को आधार बना कर कुछ भावनायें व्‍यक्‍त करने की कोशिश की है।

बेटे को फोटोग्राफ़ी का शौक है, सुब्‍ह-सुब्‍ह निकल पड़ा भोपाल की शान 'ताज-उल-मसाजि़द' की ओर। उसी का लिया एक फ़ोटोग्राफ़ लगा रहा हूँ, और फ़ोटो देखना चाहें तो फ़ेसबुक पर निशांत कपूर को तलाश लें।

ग़ज़ल

नहीं कुछ और दिल को चाहिये इस बार ईदी में
खुदा तू जोड़ दे इंसानियत के तार ईदी में।

तेरी नज़्रे इनायत से न हो महरूम कोई भी
सभी के नेक सपने तू करे साकार ईदी में।

न कोई ग़म किसी को हो दुआ दिल से मेरे निकले
गले सबसे मिले खुशियों भरा संसार ईदी में।

रहे न फ़र्क कोई मंदिर-ओ-मस्जि़द औ गिरजा में
सभी मिलकर सजायें उस खुदा का द्वार ईदी में।

मुहब्‍बत ही मुहब्‍बत के नज़ारे हर तरफ़ देखूँ
खुदा निकले दिलों से इक मधुर झंकार ईदी में।

मिटाकर नफ़्रतों को भाईचारे की इबादत हो
करें इंसानियत का मिल के सब श्रंगार ईदी में।

खुदा से मॉंगता आया है पावन ईद पर ‘राही’
बढ़ा दिल में सभी के और थोड़ा प्‍यार ईदी में।

तिलक राज कपूर ‘राही’ ग्‍वालियरी

54 comments:

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

नहीं कुछ और दिल को चाहिये इस बार ईदी में
खुदा तू जोड़ दे इंसानियत के तार ईदी में।
वाह...
ये हुआ शानदार पैग़ाम देता मतला...

हर शेर लाजवाब....
ये बहुत पसंद आया-
मिटाकर नफ़रतों को भाईचारे की इबादत हो
करें इंसानियत का मिल के सब श्रृंगार ईदी में।
आपको और आपके परिवार को ईद की मुबारकबाद.

Geetashree said...

बधाई ब्लाग जगत में..खुदा करे मोहब्बत ही मोहब्बत दिखाई दे आपको,,लाजवाब गजलें.पढवाते रहिए.,

Narendra Vyas said...

सभी मिलकर सजायें उस खुदा का द्वार ईदी में।
कितने अच्छे और नेक भावों को आपने इन शेरों में कहा है...
मुहब्‍बत ही मुहब्‍बत के नज़ारे हर तरफ़ देखूँ
खुदा निकले दिलों से इक मधुर झंकार ईदी में।
आपका ये सपना भी साकार हो...आमीन !
मिटाकर नफ़्रतों को भाईचारे की इबादत हो
करें इंसानियत का मिल के सब श्रंगार ईदी में।
सही कहा आपने. सबसे बड़ा श्रृंगार तो इंसानियत का ही है. ग़र इंसान में इंसानियत ख़ूबसूरत नहीं तो फिर बेकार है ये देह का श्रृंगार.
आपका दिल से आभार ! आपको और आपके परिवार को ईद की हार्दिक मुबारकबाद ! प्रणाम !

Narendra Vyas said...

आदरणीय तिलकराज कपूर जी, प्रणाम ! आपकी ग़ज़ल के आशार दिल की गहराइयों तक गए. ग़ज़ल तो उम्दा हैं ही..उससे भी उम्दा और प्रेरणादाई लगा आपका भाव जो आपने ईद के मुबारक मौके प़र कैसे भी करके ये ख़ूबसूरत ग़ज़ल हमे पढ़ाई. आपके इन आशारों के सम्मान में शब्द भी श्रीहीन से प्रतीत होते हैं...

S.M.Masoom said...

Behtareen gazal. Eid Mubarak

jitendra jitanshu said...

ek achhi gazal eid ki subhahjitendra jitanshu
editor n sadinama
kolkata

manu said...

मुहब्‍बत ही मुहब्‍बत के नज़ारे हर तरफ़ देखूँ
खुदा निकले दिलों से इक मधुर झंकार ईदी में।



बहुत खूबसूरत शे'र कहा है आपने...

manu said...

मुहब्‍बत ही मुहब्‍बत के नज़ारे हर तरफ़ देखूँ
खुदा निकले दिलों से इक मधुर झंकार ईदी में।



बहुत खूबसूरत शे'र कहा है आपने...

निर्मला कपिला said...

मिटाकर नफ़्रतों को भाईचारे की इबादत हो
करें इंसानियत का मिल के सब श्रंगार ईदी में।
वाह सही वक्त पर सही इबादत। आज इसी की जरूरत है लाजवाब शेर्!
रहे न फ़र्क कोई मंदिर-ओ-मस्जि़द औ गिरजा में
सभी मिलकर सजायें उस खुदा का द्वार ईदी में।
बहुत सुन्दर अगर ऐसा हो जाये तो दुनिया स्वर्ग बन जाये। बहुत कमाल के शेर घ्डे हैं।

मुहब्‍बत ही मुहब्‍बत के नज़ारे हर तरफ़ देखूँ
खुदा निकले दिलों से इक मधुर झंकार ईदी में।
बहुत ही खूबसूरत शेर है। ईद के मुबारक मौके पर इस से अच्छी दुआ हो ही नहीं सकती। बस औ4र कुछ कहने की जरूरत नहीं आगे निशब्द हूँ। इस गज़ल के लिये बहुत बहुत बधाई। सभी को ईद की मुबारकवाद।

Padm Singh said...

खूबसूरत गज़ल ...
आज हम सब को आत्मविश्लेषण की बेहद जरूरत है ... चाहे हिंदू हो या मुसलमान या फिर कोई और ...

Udan Tashtari said...

सुन्दर गज़ल!

गणेश चतुर्थी और ईद की बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ.

डॉ टी एस दराल said...

खुदा से मॉंगता आया है पावन ईद पर ‘राही’
बढ़ा दिल में सभी के और थोड़ा प्‍यार ईदी में।

ईद पर इससे बढ़िया सन्देश और क्या हो सकता है ।
बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है तिलक जी , ईद के शुभ अवसर पर ।
बधाई ।

अरुण चन्द्र रॉय said...

बहुत सुंदर और चिंतन को प्रेरित करती ग़ज़ल.. ठीक वैसे ही.. जैसे 'इश्वर अल्लाह तेरे नाम सबको सदमति दे भगवान् "...
हर शेर मानवता के लिए दुआ कर रही है.. हमारी दुआ भी शामिल कर ले इनमे..

अजय कुमार said...

गणेश चतुर्थी, तीज एवं ईद की बधाई

हरकीरत ' हीर' said...

खुदा से मॉंगता आया है पावन ईद पर ‘राही’
बढ़ा दिल में सभी के और थोड़ा प्‍यार ईदी में।

क्या बात है तिलक जी खूब ग़ज़ल कही इस मुबारक मौके पे ....
हर शब्द इन्सानियत की दुहाई देता सा .....
पिछली ग़ज़ल पे भी मेल मिली थी आपकी बस आते आते ही रह गयी ....
और आपसे शिक्षा भी अधूरी रह गयी .....

DR. ANWER JAMAL said...

Nice post .
http://hamarianjuman.ning.com/profiles/blogs/6176643:BlogPost:77

रचना प्रवेश said...

गज़ल के शब्दों में सजी यह दुआ हर दिल से निकले ,कितना अच्छा हो ,वैमनस्य ही नहीं रहे किसी के बीच ......ग़ज़ल पढ़ ने के बाद एक ही लफ्ज आता है जुबा पर "आमीन "

दीपक 'मशाल' said...
This comment has been removed by the author.
दीपक 'मशाल' said...

सद्भावना और प्रेम से पगी आपकी ये एक और शानदार ग़ज़ल भी खूब है सर... ईद मुबारक आपको भी..

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

नहीं कुछ और दिल को चाहिये इस बार ईदी में
खुदा तू जोड़ दे इंसानियत के तार ईदी में।
......बहुत सुन्दर ग़ज़ल इस मुबारक मौके पर.

pran sharma said...

PYAR AUR MOHABBAT SE BHARPOOR
HAI AAPKEE GAZAL.

वन्दना अवस्थी दुबे said...

नहीं कुछ और दिल को चाहिये इस बार ईदी में
खुदा तू जोड़ दे इंसानियत के तार ईदी में।
बहुत खूब.

रानीविशाल said...

मुहब्‍बत ही मुहब्‍बत के नज़ारे हर तरफ़ देखूँ
खुदा निकले दिलों से इक मधुर झंकार ईदी में।
waah bahut hi nayab gazal hai...aabhar

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

नहीं कुछ और दिल को चाहिये इस बार ईदी में
खुदा तू जोड़ दे इंसानियत के तार ईदी में।

वाह तिलक कपूर जी वाह|

नीरज गोस्वामी said...

रहे न फ़र्क कोई मंदिर-ओ-मस्जि़द औ गिरजा में
सभी मिलकर सजायें उस खुदा का द्वार ईदी में।

अरसे बाद आपको देख कर हमारे हर्ष का पारावार न रहा...इस से पहले के आपकी अनुपस्तिथि से चिंतित होते आप लौट आये और लौटे भी कमाल की ग़ज़ल के साथ. आपके हुनर की जितनी दाद दी जाए कम है...आपकी सोच और लिखने का अंदाज़ दोनों निराले हैं...लिखते रहें और यूँ ही हमारा दिल खुश करते रहें...

नीरज

RAJ SINH said...

आमीन !

सुनील गज्जाणी said...

नहीं कुछ और दिल को चाहिये इस बार ईदी में
खुदा तू जोड़ दे इंसानियत के तार ईदी में।
आदरणीय तिलक साब
प्रणाम !
आप का हर शेर अच्छा ही मगर पसंद का शेर आप कि नज़र किया है . तिलक साब , इसी विषय के अंतर्गत अपनी एक छोटी कविता आप के सामने रख चाहुगा
''' बेशक वो कट्टर है
अपने धर्म के प्रति
मगर पेट कि खातिर
लगा ही लेता है
अपना ठेला
किसी ना किसी इबादत गाह
के आगे ''
सादर !

मेरे भाव said...

मिटाकर नफ़्रतों को भाईचारे की इबादत हो
करें इंसानियत का मिल के सब श्रंगार ईदी में। .....aaj iski sabse jyada jarurat hai... bahut hi samyik gajal.......

मेरे भाव said...
This comment has been removed by the author.
सुभाष नीरव said...

ईद के पावन अवसर पर आपकी इतनी सुन्दर ग़ज़ल पढ़कर बेहद खुशी हुई।

Urmi said...

भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें! गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें!
बहुत सुन्दर!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

काश ईदी में यही भाईचारा मिल जाए ....

दिल से निकली दुआ जैसी गज़ल ..

Rajeev Bharol said...

तिलक जी,
बहुत अच्छी गज़ल. मतला तो बहुत ही अच्छा लगा.
सभी लोग अगर शायरों के जैसे सोचें तो दुनिया कितनी सुंदर हो जाये.

chandrabhan bhardwaj said...

Bhai Tilakraj ji,
Bahut dinon ke baad aapki ghazal padane ko mili. Lazabab ghazal kahi hai apne -
nahin kuchh aur dil ko chahiye is baar eedi men
khuda too jod de insaaniyat ke tar eedi men.
Bahut khoob matala hi apne aap men sab kuchh kah gaya hai. Hardik badhai

रेखा श्रीवास्तव said...

मिटाकर नफ़्रतों को भाईचारे की इबादत हो
करें इंसानियत का मिल के सब श्रंगार ईदी में।

इतना काफी है इस जमीं को बचने के लिए, और इंसानियत के धरालत पर सिर्फ मानव और मानव को जीने के लिए

Unknown said...

bahoot sunder,bahoot achhi ghazalen.
man khush ho gaya.
na jaane kyu ab aise log nahin hote hai.
ki gairo ki khushi me khush ho le
aur gairon ke gham me rote hai.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 14 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

http://charchamanch.blogspot.com/

राजेश उत्‍साही said...

हे गणेश तू दुनिया के सब लोगों को शायर बना दे।

Divya Narmada said...

तिलक जी ईद पर बहुत अच्छी ग़ज़ल के लिये शुक्रिया.

Devi Nangrani said...

रहे न फ़र्क कोई मंदिर-ओ-मस्जि़द औ गिरजा में
सभी मिलकर सजायें उस खुदा का द्वार ईदी में।

Tila ji
Is silsilewaar ghazal mein manobhavon ko bakhubhi sajakar pesh kiya hai..bahut hi achi ghazal padne ka lutf liya..

madhav said...

ईद और गणेश चतुर्थी के पावन पर्व पर दिलों को जोड़ने वाला मोहब्बत का पैगाम!बहुत सुन्दर.बधाई!

Subhash Rai said...

अच्छी रचना है. इस तरह के प्रयास मेल-मिलाप और सद्भावना बढाने में मदद करते हैं.

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

Bau Jee, Bau Jee, Bau Jee!!!
Salaam Namaste!!!
Behad khoobsoorat.....
Khuda aapke khyaalon ko haqeeqat mein tabdeel kare!
Ashish

DR.ASHOK KUMAR said...

वाह! क्या नायाब गजल कही हैँ आपने । ईद की खुशियोँ के साथ ये नायाब गजल ईदी मेँ मिल गई! आभार! -: VISIT MY BLOG :- जिसको तुम अपना कहते हो........... कविता को पढ़कर तथा Mind and body researches........ब्लोग को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीय श्री तिलकराज जी कपूर भाईसाहब
विलंब से पहुंचा क्योंकि कुछ साहित्यिक आयोजनों में शहर से दूर रहा …

बहुत अच्छी ग़ज़ल है , ख़ासकर भाव पक्ष की कहूं तो …
शिल्प के दृष्टिकोण से तो हमेशा ही आपकी ग़ज़लें अच्छी होती ही हैं ।
फिर वही समस्या है , किसी एक , या दो - चार शे'रों को छांट कर कोट करना । पूरी ग़ज़ल को ही कोट समझा जाए !

रहे ना फ़र्क कोई मंदिर-ओ-मस्जि़द औ' गिरजा में
सभी मिलकर सजायें उस खुदा का द्वार ईदी में।

मुहब्‍बत ही मुहब्‍बत के नज़ारे हर तरफ़ देखूं
ख़ुदा! निकले दिलों से इक मधुर झंकार ईदी में।

मिटाकर नफ़्रतों को भाईचारे की इबादत हो
करें इंसानियत का मिल के सब श्रंगार ईदी में।

वाह वाह वाऽऽह …

हां , फोटोग्राफ हमारे यहां तो दिखाई नहीं दे रहा …

- राजेन्द्र स्वर्णकार

सर्वत एम० said...

ईद या किसी भी त्योहार के मौक़े पर इस से बेह्तर कामना हो ही नहीं सकती. गज़ल के बारे में क्या कहूं, आप उस्तादों की सफ में खडे हैं. लिहाज़ा उस के बारे में कुछ कहूं तो दो मुहावरे याद आ जाते हैं- छोटा मुंह बडी बात या पहले तोलो फिर बोलो, आपको बहुत दिनों से तोल रहा हूं और आपक वज़न तो माशाअल्लाह, नज़र न लगे.

दिगम्बर नासवा said...

नहीं कुछ और दिल को चाहिये इस बार ईदी में
खुदा तू जोड़ दे इंसानियत के तार ईदी में ..

उस्तादों को पढ़ने मज़ा कुछ और ही है .... ग़ज़ब ... सार्थक भाव और उत्तम विचार के साथ लिखी हुई ग़ज़ल पावन् हो गयी है ... बहुत खूब तिलक राज जी ....

shikha varshney said...

वाह एक एक शेर लाजबाब है . काश ऐसी ही ईदी ली और दी जाये.

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

लाजवाब सार्थक भाव और उत्तम विचार के साथ लिखी हुई ग़ज़ल ... बहुत खूब तिलक राज जी

शारदा अरोरा said...

शुभ भावों के साथ सजी ये ग़ज़ल , धार्मिक सहिष्णुता का सन्देश देती हुई ...बहुत अच्छी लगी ।

रचना दीक्षित said...

"नहीं कुछ और दिल को चाहिये इस बार ईदी में
खुदा तू जोड़ दे इंसानियत के तार ईदी में।"
बहुत अच्छी ग़ज़ल है एक एक शेर लाजबाब है

Dr.R.Ramkumar said...

मुहब्‍बत ही मुहब्‍बत के नज़ारे हर तरफ़ देखूँ
खुदा निकले दिलों से इक मधुर झंकार ईदी में।

वाह! श्रीमान जी!
सुन्दर मनोकामना।

आमीन!
इरशाद !
हजारहा इरशाद!

sandhyagupta said...

ईद पर इससे बेहतर प्रस्तुति क्या हो सकती थी.बहुत खूब.

Devi Nangrani said...

Kuch kahoon ya chup rahoom ye sochti hoon
Chup rahoon is Eid ke mauqe pe yeh socha abhi.
aapki kalam ki guftaar meri bezubani ki bhasha ban gayi hai.
daad ke saath
Devi Nangrani