Sunday, August 15, 2010

आतंकवादी की फरमाईश पर ग़ज़ल-2


आतंकवादी तो बड़ा शरीफ़ निकला; मेरी व्‍यस्‍तता की स्थिति से समझौता कर सब्र से बैठा हुआ है। मेरा दिल नहीं माना। सोचा इस अवकाश का लाभ लेकर कुछ मुहब्‍बत भरी बात कही जाये। बस पेश है।

ग़ज़ल को सामान्‍यतय: कोई शीर्षक नहीं दिया जाता है लेकिन मुझे लगता है कि इस ग़ज़ल में यह गुँजाईश है। इसका हर शेर मुहब्‍बत की ही बात कहता है और हर शेर में मुहब्‍बत शब्‍दश: अलग रंग लिये हुए मौज़ूद है। इस ग़ज़ल का हर काफि़या उर्दू से है। जहाँ हिन्‍दी भाषियों को कठिनाई हो सकती है वहॉं सुविधा के लिये उर्दू शब्‍द का अर्थ सम्मिलित कर लिया है।
मुहब्‍बत

मुहब्‍बत के उसमें दिखे ये निशाँ से
खयालों में ग़ुम बेखुदी इस जहाँ से।
(निशाँ- निशान; जहाँ- दुनिया)

मुहब्‍बत में पाये हर इक आस्‍ताँ से,
गिले, शिकवे, ताने सभी की ज़बाँ से।
(आस्‍ताँ- दहलीज़, ड्यौढ़ी; ज़बाँ - जिव्‍हा, जीभ)

कोई मर मिटेगा, मुहब्‍बत में तेरी
अगर तीर छोड़ा नयन की कमाँ से।

बदलता ही रहता है ये रंग अपने
सम्‍हल कर मुहब्‍बत करो आस्‍माँ से।

भला किसकी खातिर हो दौलत के पीछे
मुहब्‍बत तो मिलती नहीं है दुकाँ से।

वतन की हिफ़ाजत में वर्दी पहन कर
मुहब्‍बत न हमने करी जिस्‍मो-जाँ से।

मुहब्‍बत तो मॉंगे है ज़ज्‍ब: दिलों का
सितारे न चाहे कभी कहकशाँ से।
(कहकशाँ- आकाश गंगा)

समाया हुआ है मज़ा इसमें लेकिन
मुहब्‍बत न करना ज़मीन-ओ मकाँ से।

मुहब्‍बत को पर्वाज़ देने चला हूँ
इज़ाज़त तो ले लूँ मैं उस मेह्रबाँ से।
(पर्वाज़- उड़ान)

बने फ़स्‍ले-गुल से मुहब्‍बत के नग्‍़मे
नयी रंगो-बू फिर उठी गुलिस्‍ताँ से।
(फ़स्‍ले-गुल-बसंत ऋतु; रंगो-बू- रंग और सुगंध; गुलिस्‍ताँ-उद्यान, वाटिका)

डराने से पीछे हटी न मुहब्‍बत,
लड़ी है हमेशा ये दौरे-ज़माँ से।
(दौरे-ज़माँ- ज़माने का समय या काल)

अगर तल्‍ख़ लगती है तुमको मुहब्‍बत
कला इसकी सीखो किसी कारदाँ से।
(तल्‍ख़- कड़वी, अरुचिकर; कारदाँ- अनुभवी)

इबादत मुहब्‍बत की करने चला तो,
मिले मुझको 'राही' सभी यकज़बाँ से।
(इबादत- आराधना, पूजा; यकज़बाँ- सहमत, एकराय)

तिलक राज कपूर 'राही' ग्‍वालियरी

49 comments:

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

तिलक राज जी,
स्वतंत्रता दिवस पर मुहब्बत के पैग़ाम का ये तोहफ़ा पेश करने के लिए शुक्रिया...और मुबारकबाद.
पूरी ग़ज़ल शानदार रही...
ये शेर खास तौर पर अच्छा लगा-
मुहब्‍बत तो मॉंगे है जज़्बा दिलों का
सितारे न चाहे कभी कहकशाँ से।

वन्दना अवस्थी दुबे said...

वतन की हिफ़ाजत में वर्दी पहन कर
मुहब्‍बत न हमने करी जिस्‍मो-जाँ से।
स्वाधीनता दिवस पर हार्दिक शुभकामानाएं.

अरुण चन्द्र रॉय said...

तिलक साहब नमस्कार ! स्वतंत्र दिवस शांति से गुजरा.. इसके लिए देश के कोने कोने में तिनक पुलिस, आर्मी और अन्य सिपाही सैनिक को धन्यवाद कहिये..
आपकी तजा ग़ज़ल लाजवाब है.. हर शेर उम्दा है.. खास तौर पर..
"वतन की हिफ़ाजत में वर्दी पहन कर
मुहब्‍बत न हमने करी जिस्‍मो-जाँ से।"

मेरे भाव said...

umda gazal.. umda bhav..

pran sharma said...

ACHCHHEE GAZAL KE LIYE BADHAAEE
AUR SHUBH KAMNA.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीय तिलक राज कपूर साहब ,
शरीफ़ आतंकवादी तो हद से ज़्यादा शरीफ़ निकला ।
लगता है अंदर ही अंदर सौदा हुआ है कोई ।
लेकिन इंतज़ार का पूरा लुत्फ़ आ गया , इससे इंकार नहीं ।

भला किसकी खातिर हो दौलत के पीछे
मुहब्‍बत तो मिलती नहीं है दुकां से

क्या बात है ! क्या बात है ! क्या बात है !
लाख रुपये का शे'र है ।

कोई मर मिटेगा, मुहब्‍बत में तेरी
अगर तीर छोड़ा नयन की कमां से

मर मिटे कोई उनकी बला से !
हुस्न वाले अदाओं के जाल में फांस ही लेते हैं …

मुहब्‍बत तो मांगे है जज़्बः दिलों का
सितारे न चाहे कभी कहकशां से

लेकिन आजकल दिल के जज़्बों की पहचान किसे है ?
शे'र चौबीस कैरेट शानदार और जानदार !

मुहब्‍बत को पर्वाज़ देने चला हूं
इजाज़त तो ले लूं मैं उस मेह्रबां से

खा गया मात बेचारा ग़रीब आशिक़ …
बिना इजाज़त मुहब्‍बत को पर्वाज़ देने के साथ ही !!

भाई साहब , है तो पूरी ग़ज़ल क़ाबिले-ता'रीफ़ !
ता'रीफ़ के लिए लेकिन वाज़िब शब्द नहीं हैं मेरे पास तो …
हाज़िरी लिख लें , बस !

- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

आशा ढौंडियाल said...

tilak ji...aapki shandar gazal azadi ke mubarak din par sach me taufa sa lagi....wah bahut hi umda andaz_e_bayan hua hai....mubarak ho aapko...

इस्मत ज़ैदी said...

मुहब्‍बत तो मॉंगे है ज़ज्‍ब: दिलों का
सितारे न चाहे कभी कहकशाँ से।

बहुत ख़ूब !
जज़्बे की सच्चाई तो इसी में है

''अपनी माटी'' वेबपत्रिका सम्पादन मंडल said...

padh kar achha lagaa.kapoor jee badhaaee

निर्मला कपिला said...

स्वतन्त्रता दिवस पर ये शानदार तोहफा-- वाह। गज़ल लाजवाब बन पडी है--
भला किसकी खातिर हो दौलत के पीछे
मुहब्‍बत तो मिलती नहीं है दुकाँ से।

वतन की हिफ़ाजत में वर्दी पहन कर
मुहब्‍बत न हमने करी जिस्‍मो-जाँ से।

मुहब्‍बत तो मॉंगे है ज़ज्‍ब: दिलों का
सितारे न चाहे कभी कहकशाँ से।


समाया हुआ है मज़ा इसमें लेकिन
मुहब्‍बत न करना ज़मीन-ओ मकाँ से।
वाह बहुत खूब मुहब्बत का पैगाम दिया आपने। लाजवाब गज़ल के लिये बधाई।

Fani Raj Mani CHANDAN said...

It was great pleasure reading this marvelous Ghazal on the occasion of Independence day. Don't have words to appreciate it :-)

Regards
Fani Raj

परमजीत सिहँ बाली said...

वतन की हिफ़ाजत में वर्दी पहन कर
मुहब्‍बत न हमने करी जिस्‍मो-जाँ से।

bahut badhiyaa!!

स्वाधीनता दिवस पर हार्दिक शुभकामानाएं.

chandrabhan bhardwaj said...

Bhai Tilak Raj ji,
Sabase pahale Swatantrata divas ki shubh kamanayen. Is mauke par apne muhabbat bhari jo ghazal pesh ki hai wah lazabav hai har sher apne aap men chust durust.Kis kis sher ki tareef karoon. Is behad khoobsorat ghazal ke liye hardi badhai.

नीरज गोस्वामी said...

कुछ लोगों की आदत ही खराब होती है, शराफत से मानते ही नहीं...मुझे नहीं मालूम था के शायर भी इस आदत के शिकार हो गए हैं...जब तक आपको आतंक वादी धमकी नहीं देता आपके ज़हन से अशआर फूटते ही नहीं...कमाल है...बन्दूक के डर से लोगों का और बहुत कुछ निकलता है लेकिन... शेर निकलते पहली बार देखे...
अब बात ग़ज़ल की...
कोई मोहब्बत से भरा शख्स ही इतनी मोहब्बत से भरी ग़ज़ल लिख सकता है...आपने जो लिखी है वो ग़ज़ल नहीं...कमाल है...अजूबा है...जादू है...वाह...हर शेर में मोहब्बत को शिद्दत से बयां करना बच्चों का खेल नहीं...एक से बढ़ कर एक बेहतरीन शेर कहें हैं आपने...वाह...मेरी दिली दाद कबूल करें...

नीरज

निर्झर'नीर said...

वतन की हिफ़ाजत में वर्दी पहन कर
मुहब्‍बत न हमने करी जिस्‍मो-जाँ से।

मुहब्‍बत तो मॉंगे है ज़ज्‍ब: दिलों का
सितारे न चाहे कभी कहकशाँ से।

वाह...बेहतरीन ..दाद कबूल करें...

Himanshu Mohan said...

असर रफ़्त:-रफ़्त: ये लाई मुहब्बत
वो रखने लगे राज़ अब राज़दाँ से

मुहब्बत बरसती है हर शे'र से यूँ
यहाँ से-वहाँ से-न जाने कहाँ से

हैं नज़राना ये पेशे-ख़िदमत ऐ राही
तेरी शायरी को मेरे गुलसिताँ से

ashok andrey said...

Tilak Raj jee aapki gajlon ko to pehle bhii padaa hai jinhen maine pasand kiya hai kayonki ye mun ko chhuti hain ummeed karta hoon ki bhavishya me bhii aapki aur achchhi gajlon se rubroo hone ka maoka milegaa. in achchhi gajlon ke liye badhai
ashok andrey

तिलक राज कपूर said...

@हिमॉंशु मोहन जी
क्‍या बात कही है आपने। वो रखने लगे....

यहाँ, वहॉं कहॉं हिन्‍दी में सही हैं पर मैनें ये काफिये छोड़ दिये विवाद से बचने के लिये।
ग़ज़ल को उर्दू के नज़रिये से देखने वालों को इनपर एतराज़ होगा। जो काफि़या मैनें लिया है वह अस्‍ल में 'आ' के साथ 'न' का लघु रूप है, इन्‍हें पूरा खोलें तो मेहरबान, जान, गुलिस्‍तान, मकान आदि आदि शब्‍द मिलते जबकि यहाँ, वहॉं कहॉं के साथ ऐसा नहीं होता।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

swantrata diwas pe itni shandaar najam pesh karne ke liye bahut bahut dhanyawad..........ab barabar aate rahunga, follow karne laga hoon:)

डॉ. जेन्नी शबनम said...

tilak ji,
sahi kaha swatantrata diwas shaantipurwak beet gaya, kahin koi utpaat nahin aatankiyon ka, mumkin hai shayad apne apne watan ke liye desh prem jaga ho aur zindgi ki keemat samajh aai ho.
sabhi sher bahut kamaal ke hain, ye antim do kuchh jyada hin pasand aaye...

अगर तल्‍ख़ लगती है तुमको मुहब्‍बत
कला इसकी सीखो किसी कारदाँ से।

इबादत मुहब्‍बत की करने चला तो,
मिले मुझको 'राही' सभी यकज़बाँ से।

bahut badhaia aur shubhkaamnaayen

Udan Tashtari said...

वतन की हिफ़ाजत में वर्दी पहन कर
मुहब्‍बत न हमने करी जिस्‍मो-जाँ से।

-वाह तिलक साहब...आनन्द आ गया. बहुत खूब!

डॉ टी एस दराल said...

वतन की हिफ़ाजत में वर्दी पहन कर
मुहब्‍बत न हमने करी जिस्‍मो-जाँ से।

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर इससे बेहतर ज़ज्बा और क्या हो सकता है ।
इस शानदार ग़ज़ल के लिए आभार ।

अभिन्न said...

har sher khubsurat aur vazandaar hai-15 August ke is tohfe ko pakar bahut khushi hui

nilesh mathur said...

वाह! क्या बात है, बहुत सुन्दर!

आपका अख्तर खान अकेला said...

tilk ji aapki rchnaa itni sch he iskaa sbut aamir khaan ki fnaa film he . akhtar khan akela kota rajsthan

madhav said...

प्रिय तिलकराज जी,
स्वतन्त्र्ता दिवस के मुबारक मौके पर आपने देशवासियों के भाल पर मुहब्बत का जो तिलक लगाया है वह हमेशा चमकता रहे.बहुत प्यारी गज़ल. बधाई.
आपका
माधव नागदा

Rajeev Bharol said...

तिलक जी,
बहुत ही अच्छी गज़ल.
आपकी हर गज़ल हीरे जैसी तराशी हुई होती है. हर शेर पर अकेले में ही मुंह से 'वाह' निकलती है.

gyaneshwaari singh said...

बहुत अच लिखा है अपने हर शेर

गुनगुनाने लायक बन पड़ी है गज़ल

सखी

shikha varshney said...

मुहब्‍बत तो मॉंगे है जज़्बा दिलों का
सितारे न चाहे कभी कहकशाँ से
वाह क्या बात है ..बहुत उम्दा.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

भला किसकी खातिर हो दौलत के पीछे
मुहब्‍बत तो मिलती नहीं है दुकाँ से।


मुहब्‍बत तो मॉंगे है ज़ज्‍ब: दिलों का
सितारे न चाहे कभी कहकशाँ से।

बहुत खूबसूरत गज़ल.....

Shamshad Elahee "Shams" said...

कपूर साहब, कवि हर हाल में मौहब्बत का, अमन चैन का हिमायती होता है..इस नुक्ते नज़र से यह गज़ल न केवल एक सुन्दर काव्याभिव्यक्ति है वरन एक सफ़ल सामाजिक पैगाम भी है...बधाई स्वीकार करें..

योगेन्द्र मौदगिल said...

bahut khoob kapoor sahab....main to aapka shuru se fan hoon....shukriya ek behtreen gazal padwane ke liye.....

प्रमोद ताम्बट said...

अपने ब्लॉग का लिंक भेजने और खूबसूरत गज़ल पढ़वाने के लिए शुक्रिया।

प्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
http://vyangyalok.blogspot.com

राजेश उत्‍साही said...

मु‍हब्‍बत हर हाल में जिंदा रहती है। और वही इंसानियत को जिंदा रखती है।

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

khoobsurat!

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

जश्ने-आजादी के मौके पर मोहब्बत से भरी ग़ज़ल.... !! सुन्दर तोहफा दिया आपने.

वतन की हिफ़ाजत में वर्दी पहन कर
मुहब्‍बत न हमने करी जिस्‍मो-जाँ से।

भला किसकी खातिर हो दौलत के पीछे
मुहब्‍बत तो मिलती नहीं है दुकां से

क्या बेहतरीन अशआर हैं. शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया !!!

- सुलभ

SURINDER RATTI said...

Kapoor Sahab,
Tuhada jawaab nahin - Bahut Hi badhiya ghazal hai ...maza aa gaya

अगर तल्‍ख़ लगती है तुमको मुहब्‍बत
कला इसकी सीखो किसी कारदाँ से।
Surinder Ratti
Mumbai

vijay kumar sappatti said...

tilak ji

ab main kya kahu , aapne har sher itni khoobi se likha hai ki kuch kahne ko bachata hi nahi .. mohaabat ka jaadu chaahya hua hai aapki gazal me .. padhkar hi kuch ho jaata hai to sochiye , likhne waale ke dil me kitni mohabbat hongi ...

waahhhhhhhh

Dr. Vimla Bhandari said...

मन भावन प्रस्तुति

Rajiv said...

Sir jee,sunder,bhawpurn avam samvedansheel rachna.AApse bahut kuch sikhane ko mila hai yahan.

दिगम्बर नासवा said...

वतन की हिफ़ाजत में वर्दी पहन कर
मुहब्‍बत न हमने करी जिस्‍मो-जाँ से ...

बहुत खूब तिलक राज जी हर शेर मुहब्बत को नये आयाम तक ले जाता है ....... मुहब्बत का पैगाम देती ये ग़ज़ल अपने आप नें मुहब्बत का दस्तावेज़ है ... १५ अगस्त के दिन तो इसकी ख़ासियत और भी बॅड जाती है ... देश को आज बस प्यार और भाई चारे की ज़रूरत है ....

शोभना चौरे said...

bahut bahut bahut badhiya

रेखा श्रीवास्तव said...

वतन की हिफ़ाजत में वर्दी पहन कर
मुहब्‍बत न हमने करी जिस्‍मो-जाँ से।

आजादी के इस पर्व पर इन पंक्तियों का सन्देश बहुत कुछ कह रहा है.

Asha Joglekar said...

Kya gazal kahee hai hrek sher muhabbat se labrej hai. par ye do khasam khas lage.
भला किसकी खातिर हो दौलत के पीछे
मुहब्‍बत तो मिलती नहीं है दुकाँ से।

वतन की हिफ़ाजत में वर्दी पहन कर
मुहब्‍बत न हमने करी जिस्‍मो-जाँ से।

Sanjay Grover said...

मुहब्‍बत के उसमें दिखे ये निशाँ से
खयालों में ग़ुम बेखुदी इस जहाँ से।

Achchi shuruaat hai--ghazal ki bhi aur mohabbat ki bhi...

RAJ SINH said...

तिलक भाई ,
देर से पहुंचा हूँ पर क्या लुत्फ़ उठाये हमने !
अब मेरे कहने को बचा क्या है ? खास कर नीरज गोस्वामी जी के कह चुकने के बाद .फिर भी बस इतना ही .......

.............मेरी तरह से तू भी लुटा है बहार में ?

आतंकवादी का शुक्रिया !

शारदा अरोरा said...

बहुत सुन्दर ग़ज़ल ...लेट पहुँची हूँ ...मगर एक बढ़िया ग़ज़ल का लुत्फ़ उठा पाई हूँ , धन्यवाद ।

kavita verma said...

वतन की हिफ़ाजत में वर्दी पहन कर
मुहब्‍बत न हमने करी जिस्‍मो-जाँ से।
swatantra diwas ke avasar par javano ki shahadat,aur unki kartavya parayanta ke liye isse behtar shabd sanchayan nahi ho sakta tha...sadhuvad....

Anonymous said...

bahut badiya....

A Silent Silence : Mout humse maang rahi zindgi..(मौत हमसे मांग रही जिंदगी..)

Banned Area News : Himanshi Choudhry Waiting For Mr. Right!